जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
सेंट्रल इंडिया लॉ इंस्टिट्यूट, जबलपुर, जो लंबे समय से एक प्रतिष्ठित नाम के तौर पर शैक्षिक दुनिया में जाना जाता था, अब एक गंभीर कानूनी संकट का सामना कर रहा है। साल 2019 में ही इस संस्थान की बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) से मान्यता समाप्त हो गई थी, लेकिन इसके बावजूद यहां छात्रों को लगातार एडमिशन दिया जाता रहा। यह संस्था न केवल शैक्षिक मानकों की अनदेखी कर रही थी, बल्कि छात्रों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही थी। अब, भोपाल क्राइम ब्रांच पहली बार इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की तैयारी कर रही है।
दरअसल, भोपाल पुलिस के कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्र को इस संस्थान और अन्य 135 अवैध रूप से संचालित संस्थानों के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए थे। जांच में यह बात साफ हुई कि सेंट्रल इंडिया लॉ इंस्टिट्यूट ने अपनी बीसीआई मान्यता समाप्त होने के बाद भी विधि पाठ्यक्रम (एलएलबी-एलएलएम) का संचालन जारी रखा। इससे छात्रों के भविष्य पर बड़ा संकट खड़ा हो गया, क्योंकि वे जिन डिग्रियों के आधार पर अपनी भविष्यवाणी कर रहे थे, वे पूरी तरह से अवैध थीं। इसी के साथ हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई तक जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 25 मार्च को होगी, जिसमें उच्च शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी और पुलिस कमिश्नर भोपाल को हाजिर रहना होगा।
गौरतलब है कि 11 मार्च को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना मान्यता वाले विधि पाठ्यक्रम में प्रवेश देने वाले कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का निर्देश दिया। दरअसल, जबलपुर के विधि छात्र व्योम गर्ग और शिखा पटेल ने कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी पीड़ा बयां की। उन्होंने बताया कि उन्होंने सेंट्रल इंडिया लॉ इंस्टीट्यूट से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की थी और जब वह स्टेट बार काउंसिल ऑफ मध्य प्रदेश में रजिस्ट्रेशन कराने पहुंचे, तो उनका आवेदन यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया कि उनके कॉलेज की मान्यता ही समाप्त हो चुकी है!
छात्रों को यह तब पता चला, जब उनका भविष्य अधर में लटक गया। उन्हें यह भी बताया गया कि कॉलेज ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की रिन्यूअल फीस ही जमा नहीं की थी, जिस कारण मान्यता स्वतः समाप्त हो गई। इस चौंकाने वाले खुलासे ने न सिर्फ याचिकाकर्ताओं बल्कि हजारों छात्रों को सकते में डाल दिया।
याचिकाकर्ताओं ने एक और बड़ा खुलासा किया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया कई बार 20 साल बाद बैकडेट में मान्यता प्रदान कर देती है। इसका मतलब यह हुआ कि कई छात्र पहले ही डिग्री पूरी कर चुके होते हैं, और बाद में पता चलता है कि जिस समय उन्होंने पढ़ाई की थी, उस दौरान कॉलेज की मान्यता ही नहीं थी!
छात्रों का आरोप था कि कई बार बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिल, मध्य प्रदेश शासन एवं विश्वविद्यालयों के पोर्टल पर गलत जानकारी अपलोड कर दी जाती है, जिससे छात्र भ्रमित हो जाते हैं और बाद में उनका करियर दांव पर लग जाता है।
जिसके बाद इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने इस गंभीर मामले का संज्ञान लिया और प्रदेशभर के उन शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जो बिना मान्यता के छात्रों को प्रवेश देकर उनके भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की जांच के लिए भोपाल के पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया है और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों को भी जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए हैं।
अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि जो भी कॉलेज बिना मान्यता के छात्रों को एलएलबी और एलएलएम में प्रवेश देते हैं, उनके खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज की जाएगी। साथ ही, कॉलेजों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि—
- अगर कोई विधि संस्थान बार काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त नहीं है, तो यह जानकारी उनके पोर्टल पर स्पष्ट रूप से प्रकाशित होनी चाहिए।
- बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिससे कोई भी संस्थान छात्रों को गुमराह न कर सके।
- सभी लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को हर वर्ष मार्च माह में अपने पोर्टल को अपडेट करना अनिवार्य होगा, ताकि छात्रों को सही जानकारी मिल सके।
बता दें, मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 25 मार्च को निर्धारित की है। अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि—
✔ मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी और भोपाल के पुलिस कमिश्नर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा।
✔ इस पूरे मामले में विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी होगी कि आखिर यह गड़बड़ी कैसे हुई और कौन-कौन इसके लिए जिम्मेदार है।