जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मुंबई, जहां रोज़ नये कारनामों और घटनाओं की गूंज रहती है, वहीं इस बार एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। 86 साल की बुजुर्ग महिला ने अपनी कड़ी मेहनत की कमाई, जो कि उनकी जीवनभर की बचत थी, डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के तहत जालसाजों को दे दी। उन्होंने न केवल इस महिला को धमकाया, बल्कि उसे अपने घर में बंद रखने और उसकी हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए मजबूर कर दिया।
यह घटना 26 दिसंबर 2024 से 3 मार्च 2025 के बीच हुई थी, जब महिला को एक व्यक्ति का फोन आया, जिसने खुद को सीबीआई अधिकारी बताया। उसने महिला से कहा कि उसका आधार कार्ड का इस्तेमाल अवैध तरीके से एक बैंक अकाउंट खोलने के लिए किया गया था, और इस खाते का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हो रहा था। इसके बाद, महिला को धोखाधड़ी के इस आरोप से मुक्त करने के नाम पर आरोपी ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
जालसाजों ने महिला को डिजिटल अरेस्ट कर लिया था, जिसका मतलब था कि उसे अपने घर से बाहर न निकलने और अपने कमरे में ही बंद रहने की सख्त हिदायत दी गई। हर तीन घंटे में उसका फोन करके लोकेशन चेक किया जाता था। महिला सिर्फ खाना खाने के लिए कमरे से बाहर निकलती थी, लेकिन उसके बाद फिर से उसे कमरे में बंद कर दिया जाता था। इस दौरान वह घबराई हुई और चिल्लाती थी, जिसका असर घर में काम करने वाली मेड पर पड़ा। मेड ने महिला के व्यवहार को देखा और तुरंत इसकी सूचना महिला की बेटी को दी, जिससे मामला पुलिस के पास पहुंचा।
महिला से जुड़े आरोपियों ने उसे यह भी बताया कि अगर वह मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप से खुद को बचाना चाहती है, तो उसे बैंक डिटेल्स और अन्य व्यक्तिगत जानकारी देनी होगी। इसके बाद, महिला से 20.26 करोड़ रुपये की रकम ठग ली गई। आरोपी ने महिला से यह वादा किया था कि जांच पूरी होने के बाद उसे उसकी पूरी रकम लौटा दी जाएगी।
बिना किसी देरी के, मुंबई पुलिस की साइबर क्राइम टीम ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू की और तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। इन आरोपियों में शायन जमील शेख, रजीक अजान बट और ऋतिक शेखर ठाकुर शामिल थे, जिनमें से बट पर शक है कि वह एक इंटरनेशनल साइबर क्रिमिनल गिरोह का सदस्य है।
साइबर क्राइम विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड अब एक नया और बढ़ता हुआ खतरा बन चुका है। ऐसे अपराधी खुद को कानून प्रवर्तन अधिकारी या सरकारी एजेंसियों के कर्मचारी बताकर, वीडियो कॉल या फोन के जरिए पीड़ितों को धमकाते हैं। इस प्रकार के अपराधों में पीड़ितों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, और उनके ऊपर दबाव डालकर धन उगाहा जाता है।
हालांकि इस मामले में साइबर पुलिस ने 77 लाख रुपये को फ्रीज़ कर दिया है और आरोपी के बैंक खातों को सील कर दिया है, लेकिन यह सवाल उठता है कि कितने और बेखबर लोग ऐसे अपराधियों के शिकार हो चुके हैं। एक दशक में भारतीय बैंकों ने 65,017 धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए हैं, जिसमें कुल 4.69 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। साइबर अपराधी अब UPI, क्रेडिट कार्ड, ओटीपी, जॉब स्कैम, और डिलीवरी स्कैम जैसे तरीकों से लोगों को धोखा देने में माहिर हो चुके हैं।