शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी 2025, आरोग्य और समृद्धि का पावन पर्व; जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि पर मनाया जाने वाला शीतला अष्टमी व्रत और शीतला सप्तमी व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस व्रत का संबंध माता शीतला की आराधना और रोगों से मुक्ति के आशीर्वाद से जुड़ा है। कुछ क्षेत्रों में यह व्रत सप्तमी तिथि को तो कुछ में अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस दिन माता शीतला को ठंडा और बासी भोजन अर्पित किया जाता है तथा भक्त भी इसी भोजन का सेवन कर व्रत का पालन करते हैं।

शीतला सप्तमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

इस वर्ष शीतला सप्तमी 21 मार्च 2025 को मनाई जाएगी।

  • सप्तमी तिथि प्रारंभ: 21 मार्च, सुबह 2:45 बजे
  • सप्तमी तिथि समाप्त: 22 मार्च, सुबह 4:23 बजे
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: 21 मार्च, सुबह 6:16 बजे से शाम 6:26 बजे तक

शीतला अष्टमी 2025: व्रत एवं पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 22 मार्च को प्रातः 4:23 बजे से होगा और 23 मार्च को प्रातः 5:23 बजे समाप्त होगा। उदया तिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च 2025 को रखा जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 6:16 बजे से सायं 6:26 बजे तक रहेगा।

धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में माता शीतला को आरोग्य की देवी माना जाता है। उनका स्वरूप अन्य देवियों से भिन्न है। माता गधे पर विराजमान होती हैं और उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप और नीम की पत्तियों की माला होती है। ये सभी वस्तुएं स्वास्थ्य और सफाई से जुड़ी हुई हैं:

  • कलश – शुद्धता और जीवन का प्रतीक माना जाता है।
  • झाड़ू – सफाई का प्रतीक है, जिससे रोग और बुराइयों का नाश होता है।
  • सूप – यह अनाज को छानने और शुद्ध करने का कार्य करता है, जिससे स्वच्छता का संदेश मिलता है।
  • नीम की पत्तियों की माला – नीम के औषधीय गुणों को ध्यान में रखते हुए इसे रोग नाशक माना गया है।

स्कंद पुराण के अनुसार, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने संपूर्ण संसार को रोगमुक्त और स्वस्थ रखने का दायित्व माता शीतला को सौंपा था। माता शीतला की कृपा से मनुष्य को चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी और नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि श्रद्धालु इस दिन माता की विधि-विधान से पूजा कर आरोग्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक गाँव के लोगों ने माता शीतला को गरम भोजन अर्पित कर दिया, जिससे माता का मुख जल गया और वे क्रोधित हो गईं। उनके क्रोध के कारण गाँव में अग्निकांड हो गया। लेकिन एक वृद्धा का घर इस आग से सुरक्षित रहा क्योंकि उसने माता को ठंडा और बासी भोजन अर्पित किया था। तभी से माता शीतला को ठंडा भोजन चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।

बासी भोजन का भोग क्यों लगाया जाता है?

बासी भोजन ग्रहण करने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण माने जाते हैं।

  • धार्मिक मान्यता:

मान्यता है कि माता शीतला को ठंडा और बासी भोजन अत्यंत प्रिय है। भक्त जब माता को ठंडे एवं बासी भोजन का भोग लगाते हैं तो माता प्रसन्न होकर उन्हें आरोग्य का वरदान देती हैं। इस दिन परिवार के सभी सदस्य एक दिन पूर्व बनाए गए भोजन को ग्रहण करते हैं।

  • स्वास्थ्य संबंधी मान्यता:

शीतला अष्टमी का त्योहार गर्मी के आगमन के समय पड़ता है। इस दौरान मौसमी परिवर्तन के कारण संक्रामक बीमारियों, विशेष रूप से चेचक और खसरा का खतरा बढ़ जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, बासी भोजन में कुछ ऐसे प्राकृतिक गुण होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) को बढ़ाते हैं। इससे गर्मी के प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है और शरीर को संक्रमण से बचाया जा सकता है।

व्रत की विशेष परंपराएँ

शीतला सप्तमी से एक दिन पहले विशेष रूप से ओलिया, खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी और सब्जियाँ बनाई जाती हैं। यही पकवान शीतला माता के चरणों में अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद, यही भोजन बासी रूप में घर के अन्य सदस्य ग्रहण करते हैं, ताकि माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके। इस दिन का महत्व केवल भक्ति और पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार के सुख-शांति और संपत्ति में वृद्धि की कामना करने का भी एक अवसर होता है।

Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोक परंपराओं पर आधारित है। पाठकों को इसे अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार अपनाना चाहिए।

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