जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में आस्था और श्रद्धा का बड़ा उत्सव देखने को मिला। यहां मशहूर दादा धूनीवाले मंदिर के नवनिर्माण के लिए आज भूमिपूजन का शुभारंभ किया गया। खास बात यह रही कि भूमिपूजन की पहली गेंती किसी मुख्यमंत्री या संत ने नहीं, बल्कि पांच कन्याओं ने चलाई। सुबह 11 बजकर 40 मिनट से 12 बजकर 15 मिनट तक के शुभ मुहूर्त में एक-एक कर पांच कन्याओं ने गेंती चलाकर नवनिर्माण कार्य की नींव रखी। इस दौरान पूरा मंदिर परिसर ‘भज लो दादाजी का नाम, भज लो हरिहर जी का नाम’ के भजनों से गूंज उठा।
इस खास मौके पर मंच पर कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल समेत कई जनप्रतिनिधि और संत मौजूद रहे। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भूमिपूजन में शामिल पांच कन्याओं व संतों को 500-500 रुपए देकर उनका आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, मंत्री प्रहलाद पटेल, तुलसी सिलावट, धर्मेंद्र लोधी और विजय शाह भी शामिल होने वाले हैं। संत राजेंद्र महाराज, उत्तम स्वामी, विवेकानंद पुरी, दादा गुरु व छोटे सरकार समेत कई संत भी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कुछ ही देर में खंडवा पहुंचेंगे। वे सीधे मंदिर परिसर जाएंगे, जहां भूमिपूजन स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित कर दादा धूनीवाले महाराज के चरणों में नमन करेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री धर्मसभा में भी भाग लेंगे। वहीं, कार्यक्रम में व्यवस्था ऐसी बनाई गई है कि मंच पर कोई सोफा या कुर्सी नहीं है। मुख्यमंत्री समेत सभी संत व अतिथि गादी व चादर पर बैठकर ही पूजा-अर्चना करेंगे। अतिथियों का स्वागत भी विशेष चादर प्रसादी से किया जाएगा।
बताया जा रहा है कि दादा धूनीवाले मंदिर का नया स्वरूप बेहद भव्य होगा। मंदिर में कुल 108 खंभे होंगे, जिनमें 84 ओपन और 24 कवर्ड खंभे समाधिस्थल और मां नर्मदा मंदिर की दीवारों में होंगे। निर्माण में राजस्थान के मकराना के उच्च क्वालिटी के डेढ़ नंबर मार्बल का उपयोग किया जाएगा। मंदिर निर्माण की अनुमानित लागत करीब 100 करोड़ रुपए है। अभी तक करीब 37 करोड़ रुपए की दान घोषणाएं हो चुकी हैं। गौरतलब है कि वर्तमान में जो मंदिर का ढांचा है, वह सीमेंट-कांक्रीट का बना है और करीब 50 साल से ज्यादा पुराना हो चुका है। वर्षों से श्रद्धालु लाल पत्थर के भव्य मंदिर निर्माण की मांग कर रहे थे। कुछ साल पहले मंदिर ट्रस्ट ने लाल पत्थर से निर्माण की शुरुआत की थी, लेकिन एक पक्ष कोर्ट चला गया और निर्माण पर रोक लग गई। अब विवाद को स्थानीय स्तर पर सुलझाकर मंदिर निर्माण कार्य ट्रस्ट की जगह प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक लोगों की संयुक्त समिति की देखरेख में किया जाएगा।
बता दें, साल 1930 में बड़े दादाजी ने इसी स्थान पर समाधि ली थी। इसके बाद उनके शिष्य छोटे दादाजी ने 12 साल तक उनकी सेवा की और फिर 1942 में उन्होंने भी यहीं समाधि ली। इस पवित्र स्थान पर अब नया मंदिर बनने जा रहा है, जो आने वाले समय में दादाजी के अनगिनत भक्तों के लिए आस्था और भव्यता का अद्भुत संगम होगा।दादाजी धाम में श्री केशवानंद महाराज (बड़े दादाजी) और श्री हरिहरानंद महाराज (छोटे दादाजी) की समाधियां हैं। यहां 1930 से अखंड धूनी जल रही है। मां नर्मदा की प्रतिमा भी मंदिर परिसर में विराजित है। दादाजी की समाधि पर दिन में चार बार भोग अर्पित किया जाता है। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं, नर्मदा परिक्रमा करने वालों और सेवादारों के लिए यहां रोज सुबह-शाम टिक्कड़ और दाल की प्रसादी बनाई जाती है।