जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्य प्रदेश में साइबर ठगों की सक्रियता तेजी से बढ़ रही है, और इसके निशाने पर आम नागरिकों के बैंक खाते व मोबाइल नंबर हैं। ठगी के तरीकों में हर रोज़ नए पैटर्न सामने आ रहे हैं — कभी नौकरी का झांसा, कभी ईनाम का लालच, तो कभी डराकर बैंक डिटेल निकलवाना। हैरानी की बात यह है कि राज्य सरकार खुद मान रही है कि इस लड़ाई में वह अब तक सिर्फ नाम मात्र की रिकवरी ही कर सकी है।
विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में गृह विभाग ने जानकारी दी है कि 1 मई 2021 से 13 जुलाई 2025 तक मप्र में साइबर फ्रॉड के मामलों में कुल 1054 करोड़ रुपए की ठगी दर्ज की गई। इसमें से सिर्फ 1 करोड़ 94 लाख रुपए ही पीड़ितों को वापस दिलाए जा सके हैं। यानी, कुल ठगी का एक प्रतिशत भी रिकवर नहीं हो पाया है।
सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इस अवधि में लगभग 105.21 करोड़ रुपए की राशि को होल्ड किया गया है, जिसका अर्थ यह है कि समय रहते कुछ लेन-देन रोके जरूर गए, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा अब तक फंसा हुआ है या सिस्टम से बाहर जा चुका है।
आंकड़े और भी गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। पुलिस के CCTNS डेटा के अनुसार, हर साल करीब 4 लाख से ज्यादा ECIR (Enforcement Case Information Report) दर्ज हो रही हैं। वर्ष 2023 को छोड़ दिया जाए तो 2020, 2021 और 2022 में औसतन 4.5 लाख से अधिक मामले हर साल सामने आए। इस साल 15 जुलाई 2025 तक ही 1.82 लाख केस दर्ज हो चुके हैं, जो दर्शाता है कि साइबर ठगों का नेटवर्क लगातार मजबूत हो रहा है।
इतना ही नहीं, 2020 से लेकर अब तक 1193 एफआईआर दर्ज हुई हैं, जिनमें से 585 मामलों में चालान पेश किया गया है, जबकि 608 केस अब भी लंबित हैं। 579 मामलों की जांच जारी है और 166 केस निरस्त कर दिए गए हैं।
कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने इस विषय पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि “जब प्रधानमंत्री खुद डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दे रहे हैं, तब मध्य प्रदेश में बीते चार वर्षों में 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी और नाममात्र रिकवरी यह दिखाती है कि ऑनलाइन लेनदेन के जोखिम कितने गंभीर हो सकते हैं।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मप्र पुलिस की साइबर विंग के पास ना तो पर्याप्त संसाधन हैं और ना ही वह गंभीरता जो ऐसे मामलों में होनी चाहिए।
विधायक का कहना है कि कई लोग साइबर ठगी के मामलों में शिकायत लेकर उनके पास आते हैं, लेकिन पुलिस स्तर पर प्रतिक्रिया बेहद धीमी और निराशाजनक रहती है। उनका मानना है कि सरकार को इस दिशा में ठोस रणनीति, प्रशिक्षित तकनीकी बल, और डिजिटल जागरूकता के अभियान की सख्त जरूरत है।