जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में 2027 में होने वाले नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों की प्रक्रिया अब बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है। राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार को सिफारिश की है कि इन चुनावों के परिसीमन और आरक्षण से जुड़े सभी काम के लिए एक “राज्य परिसीमन आयोग” का गठन किया जाए। यदि सरकार इस प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो नगर निगम, नगर पालिका-परिषद, पंचायत और जिला पंचायत स्तर पर होने वाले पदों का आरक्षण और वार्डों की सीमा तय करने का पूरा अधिकार इस आयोग के पास होगा।
अभी तक ये जिम्मेदारी नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग (शहरी निकायों के लिए) और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग (पंचायतों के लिए) के पास है। ड्राफ्ट प्रस्ताव राज्य सरकार को भेज दिया गया है, जिसमें केंद्रीय परिसीमन आयोग की तरह ही राज्य आयोग को भी व्यापक अधिकार देने की बात कही गई है।
क्यों जरूरी है नया आयोग?
वर्तमान व्यवस्था में परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया पर बार-बार राजनीतिक विवाद और पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। अक्सर राजनीतिक दल परिसीमन अधिसूचना को कोर्ट में चुनौती देते हैं, जिससे चुनाव की प्रक्रिया में देरी होती है।
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उदाहरण 1: 2019 में कांग्रेस सरकार के समय जिलों में परिसीमन के आदेश दिए गए, जिस पर भाजपा ने आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे राज्यपाल की अनुमति से जारी करने की बात कही। मामला कोर्ट पहुंचा और इसके बाद ओबीसी आरक्षण पर भी लंबा विवाद हुआ, जिससे चुनाव टल गए।
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उदाहरण 2: 2014 में भोपाल के उपनगर कोलार को नगर निगम में शामिल करने पर भी कानूनी विवाद हुआ। कई साल बाद यह प्रक्रिया पूरी हो पाई और चुनाव प्रभावित हुए।
राज्य निर्वाचन आयोग का मानना है कि एक स्वतंत्र और स्थायी परिसीमन आयोग इन विवादों को कम करेगा और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएगा।
कैसा होगा राज्य परिसीमन आयोग का स्ट्रक्चर?
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आयोग का अध्यक्ष मुख्य सचिव स्तर का सेवानिवृत्त अधिकारी होगा।
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इसके साथ सचिव स्तर के तीन रिटायर्ड अधिकारी और नगरीय विकास एवं पंचायत विभाग के अपर मुख्य सचिव सदस्य होंगे।
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अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 साल का होगा और सेवा शर्तें राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष जैसी होंगी।
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आयोग को केंद्रीय परिसीमन आयोग की तरह ही अंतिम निर्णय का अधिकार होगा, जिसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
वार्डों और पदों का परिसीमन कैसे होगा?
ड्राफ्ट के अनुसार आयोग पांच चरणों में परिसीमन प्रक्रिया पूरी करेगा—
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प्रारूप अधिसूचना: कलेक्टर के माध्यम से स्थानीय निकायों की जानकारी जुटाकर प्रारूप तैयार होगा।
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सार्वजनिक सुझाव और आपत्तियां: अधिसूचना प्रकाशित कर जनता से राय ली जाएगी।
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निराकरण प्रक्रिया: आयोग सभी आपत्तियों की सुनवाई करेगा और दस्तावेजों की जांच करेगा।
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अंतिम आदेश जारी: संशोधन के बाद परिसीमन का अंतिम आदेश जारी होगा।
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राजपत्र में प्रकाशन: आदेश राजपत्र में प्रकाशित होकर कानूनी रूप से लागू हो जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रक्रिया चुनाव से 18 महीने पहले शुरू होगी। मौजूदा पंचायतों का कार्यकाल जून 2027 में खत्म होगा, इसलिए मार्च 2026 से परिसीमन का काम शुरू करना होगा।
शहरी निकायों के वार्डों की सीमा चुनाव से कम से कम 2 महीने पहले तय करनी होगी। यदि 2027 से पहले नई जनगणना के आंकड़े आ जाते हैं, तो आरक्षण उसी के आधार पर होगा; अन्यथा पुराने क्रम को ही अपनाया जाएगा।
देश में केवल केरल में उदाहरण
भारत में अभी तक सिर्फ केरल ने राज्य स्तर पर परिसीमन आयोग का गठन किया है (2024 में)। यह आयोग राज्य निर्वाचन आयोग के अधीन काम करता है और इसमें विभिन्न विभागों के सचिव सदस्य होते हैं।
बीजेपी का कहना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ेगी। वहीं कांग्रेस इसे अनावश्यक खर्च और सत्ता पक्ष के मनमाने फैसले का जरिया बता रही है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में विधायक दल की बैठक में 2027 के निकाय चुनाव को लेकर विधायकों को सक्रिय रहने और अधिक पार्षद जिताने की जिम्मेदारी सौंपी है।