जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
इंदौर में लापता बच्चों की कहानियां सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि प्रदेश में फैल रही एक गहरी सामाजिक समस्या की तस्वीर हैं। लसूडिया थाना क्षेत्र में रहने वाली रेखा (बदला हुआ नाम) आज भी अपनी 16 साल की बेटी का इंतजार कर रही है। एक महीने पहले वह घर से बिना बताए चली गई थी और तब से उसका कोई सुराग नहीं मिला। रेखा बताती हैं कि बेटी के जाने के बाद 15 दिन तक उन्होंने खाना तक नहीं खाया, काम पर जाना बंद कर दिया और सिर्फ उसकी तलाश में जुटी रहीं। इंदौर और आसपास के इलाकों में खोजबीन के बाद भी बेटी का पता नहीं चला। उसके पास फोन भी नहीं था और घर में रहते हुए भी वह किसी से खुलकर बात नहीं करती थी। रेखा की बस यही ख्वाहिश है कि चाहे बेटी कहीं भी रहे, बस यह खबर मिल जाए कि वह सुरक्षित है।
यह कहानी अकेली नहीं है। हाल ही में विधानसभा में कांग्रेस विधायक सचिन यादव के सवाल पर सामने आए सरकारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। बीते साढ़े चार सालों में मध्यप्रदेश से 58 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं, जिनमें 47 हजार से अधिक बेटियां और 11 हजार बेटे शामिल हैं। इसमें सबसे ज्यादा गुमशुदगी के मामले इंदौर से सामने आए हैं। शहर के बाणगंगा थाना क्षेत्र से 449 बेटियां, लसूडिया से 250, चंदन नगर से 220 और आजाद नगर से 178 बच्चियां लापता हुईं।
लसूडिया क्षेत्र का एक और परिवार भी इसी दर्द से गुजर रहा है। राहुल गांधी नगर में रहने वाले एक पिता बताते हैं कि 5 जुलाई को उनकी बेटी अचानक घर से चली गई। उस दिन पति-पत्नी दोनों काम पर थे, लौटने पर कमरे का गेट खुला मिला और बेटी गायब थी। सीसीटीवी में वह जाते हुए दिखी, लेकिन आगे का कोई पता नहीं चला। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई, लेकिन जवाब मिला कि “हम भी तलाश कर रहे हैं, आप भी खोजते रहो।” इससे पहले भी बेटी एक बार रंगपंचमी के दौरान गायब हुई थी और कुछ दिन बाद खुद फोन करके घर लौटी थी।
इंदौर के अलावा कई जिलों में बेटियों की गुमशुदगी का आंकड़ा डराने वाला है। धार, रतलाम, खरगोन, बड़वानी, जबलपुर, सागर और खंडवा जैसे जिलों में भी हर साल सैकड़ों बच्चियां लापता हो रही हैं। उदाहरण के तौर पर, रतलाम जिले के रावटी थाना क्षेत्र से अकेले 247 बच्चियां गायब हुईं, जबकि जबलपुर में शहपुरा थाना क्षेत्र से 147 बच्चियों का कोई पता नहीं चला। उज्जैन, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का गृह जिला, भी इस सूची में पीछे नहीं है—यहां बड़नगर थाना क्षेत्र से 96 बच्चियां गायब हुईं।
ये आंकड़े न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि सामाजिक संरचना की कमजोरी को भी उजागर करते हैं। बच्चियों के गुम होने के पीछे पारिवारिक कलह, शिक्षा से दूरी, इंटरनेट व सोशल मीडिया का दुरुपयोग, और संगठित अपराध जैसे कई कारक हो सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है समय पर कार्रवाई और खोजबीन में तेजी। कई परिवार पुलिस की शुरुआती उदासीनता का आरोप लगाते हैं, जिससे कीमती समय निकल जाता है।