दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने के सुप्रीम कोर्ट आदेश पर राहुल गांधी का विरोध, मेनका गांधी ने भी उठाए सवाल; राहुल बोले – बिना क्रूरता के भी कुत्तों को सुरक्षित रखा जा सकता है!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने देशभर में बहस छेड़ दी है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस आदेश को दशकों से चली आ रही मानवीय और वैज्ञानिक नीतियों से पीछे ले जाने वाला कदम बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि आवारा कुत्तों को समस्या के रूप में देखने के बजाय शेल्टर, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल जैसे समाधान अपनाए जाने चाहिए। राहुल का कहना है कि बिना क्रूरता के भी कुत्तों को सुरक्षित रखा जा सकता है और पूरी पाबंदी जैसे कदम न केवल अदूरदर्शी हैं, बल्कि समाज की दया-भावना को भी कमजोर करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर के सभी नगर निकायों को निर्देश दिया था कि आठ हफ्तों के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर नसबंदी करें और उन्हें स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखें। 11 सितंबर को कोर्ट ने दोहराया कि इन कुत्तों को सड़कों पर वापस नहीं छोड़ा जाना चाहिए। यह आदेश जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने उस समय दिया, जब कोर्ट आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों पर हमले और रेबीज संक्रमण के मामलों पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने साफ चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में बाधा डालने वाले व्यक्तियों या संगठनों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई हो सकती है।

इस आदेश के पीछे की पृष्ठभूमि भी गंभीर है। 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने रेबीज से होने वाली मौतों और डॉग बाइट्स के मामलों को “डराने वाला” बताया था। पशुपालन राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने संसद में जानकारी दी थी कि 2024 में अब तक 37 लाख से अधिक डॉग बाइट्स दर्ज हुए हैं और 54 लोगों की मौत रेबीज से हो चुकी है। दिल्ली की छह साल की बच्ची छवि शर्मा का मामला भी इस बहस के केंद्र में रहा, जिसे एक आवारा कुत्ते ने काटा था और इलाज के बावजूद 26 जुलाई को उसकी मौत हो गई थी।

राहुल गांधी के साथ-साथ बीजेपी सांसद और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने भी इस आदेश पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में करीब तीन लाख आवारा कुत्ते हैं, और उन्हें स्थायी शेल्टर में रखने के लिए हजारों नए शेल्टर होम बनाने होंगे, क्योंकि किसी भी शेल्टर में अधिक संख्या में कुत्तों को एक साथ रखना संभव नहीं है। मेनका ने इसे अव्यावहारिक और अव्यवहार्य बताया।

दिलचस्प है कि 2019 के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में ओडिशा में प्रति 1000 लोगों पर सबसे अधिक 39.7 कुत्ते हैं, जबकि लक्षद्वीप और मणिपुर में कोई आवारा कुत्ता नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीदरलैंड्स ऐसा देश है, जहां शून्य आवारा कुत्ते हैं, और यह व्यापक नसबंदी, गोद लेने और सख्त कानूनों के चलते संभव हुआ है।

यह फैसला अब जन सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन पर एक नई राष्ट्रीय बहस खड़ा कर चुका है। एक ओर कोर्ट का तर्क है कि बच्चों की सुरक्षा और रेबीज पर नियंत्रण सर्वोच्च प्राथमिकता है, वहीं दूसरी ओर पशु अधिकार कार्यकर्ता इसे क्रूर और अव्यावहारिक बताते हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि इस आदेश के पालन में व्यावहारिक चुनौतियों का सामना कैसे किया जाता है और क्या कोई ऐसा समाधान निकल पाता है, जो इंसानों और जानवरों दोनों के हितों को साथ लेकर चले।

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