जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने धराली गांव का नाम मानचित्र से लगभग मिटा दिया है। 5 अगस्त को दोपहर 1:45 बजे खीर गंगा नदी घाटी में अचानक बादल फटने से महज 34 सेकेंड में पूरा गांव मलबे में समा गया। तेज रफ्तार पानी और भारी बोल्डरों ने देखते ही देखते घर, होटल, दुकानें और खेत बहा दिए। सात दिन बीत जाने के बावजूद गांव अब भी लाखों टन मलबे के नीचे दबा है, और राहत-बचाव कार्य कठिन भूगोल, टूटी सड़कों और खराब मौसम के चलते धीमी गति से आगे बढ़ रहा है।
सोमवार को मुख्यमंत्री आवास में हुई उच्चस्तरीय बैठक में सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया — धराली गांव को अब उसी स्थान पर दोबारा नहीं बसाया जाएगा। प्रशासन का मानना है कि यह इलाका भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है, जहां नदियों के किनारे और भूस्खलन प्रवण ढलानों के पास नया निर्माण करना सीधा खतरा मोल लेना है। बीते 10 वर्षों में यहां तीन बार विनाशकारी आपदाएं हो चुकी हैं, और हर बार तबाही के बाद स्थानीय लोगों ने पुनर्निर्माण कर लिया था। इस बार सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि न केवल धराली, बल्कि राज्य के अन्य संवेदनशील गांवों को भी सुरक्षित स्थानों पर पुनर्स्थापित किया जा सकता है।
अपर सचिव बंशीधर तिवारी के अनुसार, विस्थापन के लिए ग्रामीणों से बातचीत शुरू हो चुकी है। प्रभावित लोग 8 से 12 किलोमीटर दूर स्थित लंका, कोपांग या जांगला में बसाए जाने की मांग कर रहे हैं। प्रशासन ने यह भी संकेत दिया कि जहां आपदा का खतरा अधिक है, वहां भविष्य में किसी भी प्रकार का नया निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा।
इस आपदा का असर केवल स्थानीय आबादी तक सीमित नहीं रहा। हर्षिल में सेना का एक कैंप भी पूरी तरह बह गया। अब सेना नई लोकेशन तय करने के लिए श्रीखंड पर्वत और उसके आसपास के ग्लेशियरों व झीलों का सर्वे करेगी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक 43 लोग लापता बताए गए हैं, जबकि केवल एक शव बरामद हुआ है। हालांकि, स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि लापता व्यक्तियों की वास्तविक संख्या 60 से अधिक है। इनमें 29 नेपाली मजदूर भी शामिल हैं, जिनमें से 5 से मोबाइल नेटवर्क बहाल होने के बाद संपर्क हुआ है, लेकिन 24 अब भी लापता हैं। राहतकर्मियों का कहना है कि मलबा अब पत्थर की तरह सख्त हो चुका है, जिससे खोज और भी मुश्किल हो गई है।
गांव के कई परिवार अपने प्रियजनों के शव मिलने की प्रतीक्षा में अब भी स्थल पर डटे हैं। एक स्थानीय ठेकेदार ने बताया कि हादसे के समय उनका 14 सदस्यीय दल गांव के एक होटल में काम कर रहा था। वह खुद नजदीक के एक अन्य होटल में भोजन कर रहे थे और समय रहते बाहर निकल आए, लेकिन उनके 10 साथी अब भी मलबे में हैं। इसी तरह एक अन्य निवासी ने बताया कि वे मंदिर दर्शन को गए थे, इस वजह से बच गए, लेकिन उनके सामने कई लोग मिट्टी और बोल्डरों में दब गए।