जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
इंदौर के एमवाय अस्पताल में नवजातों की मौत के मामले ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। अस्पताल परिसर में चूहों के कुतरने से दो मासूमों की मौत हुई, लेकिन 15 दिन बीतने के बाद भी कठोर कार्रवाई न होने पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूरे घटनाक्रम की स्टेटस रिपोर्ट 15 सितंबर तक प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट का कड़ा रुख
न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति जे.के. पिल्लई की युगल पीठ ने इस घटना को नवजातों के मौलिक अधिकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मामला मानते हुए सख्त रुख अपनाया। अदालत ने साफ कहा कि इस तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है और जिम्मेदारों को बचाने की कोशिशें बर्दाश्त नहीं होंगी।
जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश
जांच में सामने आया कि वरिष्ठ अधिकारियों ने घटना की सच्चाई दबाने की कोशिश की। उच्च स्तर पर यह दावा किया गया कि नवजातों की मौत गंभीर बीमारी और अंग विकसित न होने के कारण हुई, जबकि हकीकत चूहों के कुतरने से उजागर हुई। यहां तक कि तत्कालीन कलेक्टर और मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर को भी गलत फीडबैक दिया गया कि पोस्टमॉर्टम हो चुका है और रिपोर्ट में चूहे के काटने का कोई उल्लेख नहीं है।
जांच में बड़े खुलासे
3 सितंबर को गठित चार सदस्यीय समिति ने मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर को रिपोर्ट दी थी। इसमें स्पष्ट किया गया कि अस्पताल की सफाई, सुरक्षा और पेस्ट कंट्रोल की जिम्मेदारी एजाइल सिक्योरिटी कंपनी को दी गई थी। लेकिन उसकी गंभीर लापरवाही सामने आई।
सबसे बड़ा खुलासा तब हुआ जब परिजन शव लेकर गांव पहुंचे और पैकिंग खोलने पर देखा कि नवजात के हाथ की चार उंगलियां पूरी तरह चूहों ने कुतर दी थीं।
शुरुआत में एजाइल सिक्योरिटी पर केवल 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया और चेतावनी देकर मामला टालने की कोशिश की गई। निचले स्तर के कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई, जबकि एजेंसी को बचाया गया। दो नर्सिंग ऑफिसरों को सस्पेंड किया गया, नर्सिंग सुपरिटेंडेंट को हटाया गया और छह कर्मचारियों को नोटिस थमा दिए गए। इस पर कर्मचारियों में गहरा रोष था कि मुख्य जिम्मेदारी एजेंसी की थी, लेकिन छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाया गया।
हाईकोर्ट की सख्ती के बाद नई कार्रवाई
अब हाईकोर्ट की सख्त फटकार और सरकार के दबाव के बाद कई कदम उठाए गए—
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एजाइल सिक्योरिटी कंपनी का अनुबंध रद्द करने की प्रक्रिया शुरू।
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पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. बृजेश लाहोटी को पद से हटाया गया।
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प्रभारी एचओडी डॉ. मनोज जोशी को सस्पेंड किया गया।
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अस्पताल अधीक्षक डॉ. अशोक यादव ने छुट्टी मांगी, जिसके बाद उन्हें हटाकर डॉ. बसंत निंगवाल को कार्यवाहक अधीक्षक नियुक्त किया गया।
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डॉ. सुमित सिंह को सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की जिम्मेदारी दी गई।
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डॉ. रामू ठाकुर को एचओडी, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग बनाया गया।
नई समिति का गठन
एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने सभी अस्पतालों में पेस्ट कंट्रोल और सफाई व्यवस्था की निगरानी के लिए 5 सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह समिति समय-समय पर निरीक्षण कर रिपोर्ट देगी ताकि इस तरह की भयावह लापरवाही दोबारा न हो।
पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता
इस पूरे घटनाक्रम के बीच प्रशासन ने देवास की नवजात बच्ची (रेहाना की बेटी) के परिवार को आर्थिक मदद दी है। कलेक्टर शिवम वर्मा के निर्देश पर एडीएम रोशन राय ने 2 लाख रुपये रेडक्रॉस सोसाइटी से और 3 लाख रुपये अस्पताल प्रशासन की ओर से दिए। इससे पहले धार के नवजात के परिवार को भी 5 लाख रुपये की सहायता दी गई थी।
एमवाय अस्पताल की यह घटना न केवल स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी किस तरह तथ्यों को दबाकर जनता और सरकार दोनों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। अब हाईकोर्ट की सख्ती के बाद उम्मीद है कि दोषियों को कठोर दंड मिलेगा और अस्पतालों की सुरक्षा व सफाई व्यवस्था में वास्तविक सुधार होगा।