जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
इंदौर नगर निगम के एक ठेकेदार फर्म को ब्लैकलिस्टेड करने के मामले की सुनवाई गुरुवार को इंदौर हाईकोर्ट में हुई। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा की अध्यक्षता में पांच जजों की लार्जर बेंच (फुल बेंच) ने इस मामले की तीसरी सुनवाई की, जो करीब पांच घंटे तक चली और अधूरी रह गई। सुनवाई आज 19 सितंबर को फिर से जारी रहेगी।
यह मामला ठेकेदार फर्म नितिन इंटर प्राइजेस द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है। फर्म 30 अक्टूबर 2020 को इंदौर नगर निगम द्वारा तीन वर्ष के लिए ब्लैकलिस्टेड कर दी गई थी। इसके साथ ही फर्म का ठेका भी निरस्त कर दिया गया था। याचिकाकर्ता की दलील है कि ठेका निरस्त करने और ब्लैकलिस्टेड किए जाने के फैसले के बीच अंतर है, और ब्लैकलिस्टिंग के खिलाफ न्यायिक अपील का अधिकार होना चाहिए। वहीं, नगर निगम और राज्य सरकार का तर्क है कि ब्लैकलिस्टिंग का मामला मध्यस्थता परिषद (आर्बिट्रेशन ट्रिब्युटेशन) में रखा जा सकता है।
गुरुवार की सुनवाई में बहस
गुरुवार को सुनवाई सुबह 10.30 बजे शुरू हुई और दोपहर 1.30 बजे तक चली। इसके बाद लंच ब्रेक के बाद दोपहर 2.30 बजे से शाम 4.30 बजे तक बहस हुई। सुनवाई में प्रदेश के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने तर्क दिया कि मामला मध्यस्थता परिषद में ले जाना उचित है। वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अमित मिश्रा ने यह दलील दी कि ब्लैकलिस्टिंग के फैसले के खिलाफ न्यायिक अपील का अधिकार होना चाहिए और मामला सीधे न्यायालय में सुलझाया जाना चाहिए।
यह सुनवाई पहले 19 और 20 अगस्त को भी हुई थी, लेकिन बहस अधूरी रहने के कारण इसे 1 और 2 सितंबर को आगे बढ़ाया गया। अब इस बहस को अंतिम रूप देने के लिए आज फिर से बेंच बैठेगी।
मुख्य मुद्दा यही है कि जब ठेका निरस्त कर दिया जाए तो ठेकेदार के पास मध्यस्थता परिषद में जाने का विकल्प होता है, लेकिन ब्लैकलिस्टेड किए जाने पर उसे कहां अपील करनी चाहिए, इस पर विवाद है। फुल बेंच इस मामले में मार्गदर्शन करेगी कि ठेकेदार फर्म के अधिकार और शासन की प्रक्रिया में संतुलन कैसे बनाए रखा जाए।
ब्लैकलिस्टिंग के इस मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच का निर्णय इंदौर नगर निगम और अन्य सरकारी ठेकेदार फर्मों के लिए भी मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है। यह फैसला ठेकेदारों के अधिकारों और सरकारी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।