जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्य प्रदेश में बीजेपी संगठन ने 62 संगठनात्मक जिलों की घोषणा शुरू कर दी है। इनमें से अब तक करीब 30 जिलों की कार्यकारिणी घोषित हो चुकी हैं। लेकिन घोषणाओं के साथ-साथ विवाद भी थमने का नाम नहीं ले रहे। कई जिलों में नेताओं और समाज के प्रतिनिधियों ने नए नियुक्तियों पर सवाल खड़े किए हैं।
रीवा: जेल से लौटे नेता को उपाध्यक्ष बनाने पर बवाल
रीवा जिले में संगठन की नई कार्यकारिणी पर सबसे बड़ा विवाद सामने आया। यहां मनीष चंद्र शुक्ला, जिन्हें जनपद CEO से मारपीट के मामले में 4 महीने जेल की सजा हुई थी और इस कारण वे पार्टी से निष्कासित भी किए गए थे, उन्हें जिला उपाध्यक्ष बना दिया गया। इसके अलावा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के भतीजे विवेक गौतम को जिला महामंत्री बनाया गया है।
गौरतलब है कि इससे पहले मऊगंज की कार्यकारिणी में गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को उपाध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन परिवारवाद के आरोपों के चलते पार्टी ने उनसे तुरंत इस्तीफा ले लिया था।
सिंगरौली: तीसरी बार उपाध्यक्ष बनाए जाने पर इस्तीफा
सिंगरौली में भी संगठनात्मक नियुक्तियों पर असंतोष खुलकर सामने आया। यहां बीजेपी जिला अध्यक्ष के दावेदार रहे राजेश तिवारी को तीसरी बार जिला उपाध्यक्ष बनाया गया। इस पर उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया।
राजेश तिवारी ने कहा कि वे पहले ही दो बार जिला उपाध्यक्ष रह चुके हैं और पार्टी में युवा मोर्चा अध्यक्ष, महामंत्री और मीडिया प्रभारी जैसे पदों पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं। इस बार उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी जिला अध्यक्ष बनाएगी, लेकिन तीसरी बार उपाध्यक्ष बनाए जाने पर उन्होंने पद छोड़ने का निर्णय लिया। तिवारी का कहना है कि अब नए कार्यकर्ताओं को अवसर मिलना चाहिए।
आगर मालवा: सौंधिया समाज का विरोध
आगर मालवा में भी जिला अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया। यहां सौंधिया राजपूत समाज ने जिला अध्यक्ष ओम मालवीय की नियुक्ति का विरोध किया है। समाज के प्रतिनिधिमंडल ने भोपाल जाकर प्रदेश भाजपा कार्यालय में ज्ञापन सौंपा और प्रदेश अध्यक्ष से मुलाकात की कोशिश की।
सौंधिया समाज का आरोप है कि जिला कार्यकारिणी में सामाजिक संतुलन नहीं रखा गया और जिले की राजनीति में प्रभाव रखने के बावजूद उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। समाज का कहना है कि कांग्रेस ने सौंधिया समाज के नेताओं को टिकट और पद दिए हैं, जबकि बीजेपी ने इस बार उन्हें नजरअंदाज कर दिया। इससे समाज में असंतोष बढ़ रहा है।
मंत्री और सांसदों के परिजनों पर भी सवाल
बीजेपी पहले भी इस तरह के विवादों का सामना कर चुकी है। अगस्त और सितंबर में घोषित जिलों की कार्यकारिणी में मंत्री और सांसदों के परिजनों को पद मिलने के बाद पार्टी को उनके इस्तीफे लेने पड़े।
मऊगंज में गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को उपाध्यक्ष बनाने का मामला हो या मंडला में मंत्री संपतिया उईके की बेटी और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की बहन को पदाधिकारी बनाए जाने का विवाद – दोनों ही मामलों में पार्टी को पीछे हटना पड़ा और इस्तीफे स्वीकार करने पड़े।
लगातार बढ़ रहे विवाद
लगातार सामने आ रहे इन विवादों ने संगठन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी ने ‘एक परिवार–एक पद’ की नीति लागू करने की कोशिश की है, लेकिन जिलों में नेताओं और समाजों की नाराजगी का दौर थम नहीं रहा। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में बीजेपी इन विवादों को कैसे सुलझाती है और संगठनात्मक मजबूती बनाए रखने के लिए कौन-से कदम उठाती है।