जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने सतना प्रवास के दूसरे दिन रविवार को बाबा मेहर शाह दरबार में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित जनमानस को एकता, भाषा और संस्कृति पर गहन संदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने नव निर्मित दरबार भवन का लोकार्पण किया और भावनात्मक संबोधन में साझा किया कि भाषा अलग हो सकती है, लेकिन भावना सभी के लिए समान होती है।
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत एक विविधताओं वाला देश है, जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन सभी भाषाएँ मूल रूप से एक ही स्रोत से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए उन्होंने यह भी कहा कि “सारी भाषाएं भारत की राष्ट्र भाषा हैं” और प्रत्येक नागरिक को कम से कम तीन भाषाएँ सीखनी चाहिए — घर की भाषा, राज्य की भाषा और राष्ट्र की भाषा। उनका मानना है कि इससे न केवल भाषाई समृद्धि बढ़ेगी, बल्कि राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी।
डॉ. भागवत ने अपने भाषण में बंटवारे के समय की यादें साझा करते हुए कहा कि विभाजन के बाद कई सिंधी भाई पाकिस्तान नहीं गए बल्कि अविभाजित भारत में आए। उन्होंने इस बात पर गर्व जताते हुए कहा — “हम घर का कमरा छोड़कर आए हैं, लेकिन कल फिर से वापस लेकर अपने लिए डेरा जमाना है”। उनका यह वक्तव्य एकता और अपने मूल की याद दिलाने वाला था।🪞 “अच्छा दर्पण दिखाकर एक होना जरूरी”
बीटीआई ग्राउंड में आयोजित सभा में उन्होंने कहा कि हम सब सनातनी हैं, हिन्दू हैं, लेकिन अंग्रेजों ने देश में अलगाव पैदा करने के लिए “टूटा हुआ दर्पण” दिखाया। उन्होंने आगे जोड़ा कि अब जरूरत है कि हम “अच्छा दर्पण” देखें, जिसमें हमारी आध्यात्मिक परंपरा और एकता झलके। उनका कहना था कि यही हमारा सच्चा गुरु है — जो हमें सही दृष्टिकोण और एकता का भाव सिखाता है।
डॉ. भागवत ने धर्म के महत्व पर जोर देते हुए कहा — “इच्छा की पूर्ति के लिए धर्म न छोड़ें”। उन्होंने कहा कि अहंकार छोड़कर अपने स्व की पहचान करना जरूरी है। यदि देश के लिए हम अपने स्व को लेकर चलेंगे तो सभी इच्छाएँ संतोषजनक रूप में पूरी होंगी।
कार्यक्रम में उपस्थित लोग
इस अवसर पर दरबार प्रमुख पुरुषोत्तम दास जी महाराज, मध्यप्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला, राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी, सांसद गणेश सिंह, इंदौर सांसद शंकर लालवानी, भोपाल के विधायक भगवान दास साबनानी, जबलपुर कैंट विधायक अशोक रोहानी सहित साधु-संत और नगर के गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।