जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश की राजनीति और कृषि जगत में एक बार फिर भावांतर भुगतान योजना चर्चा का विषय बन गई है। साल 2017 में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने इसे शुरू किया था, लेकिन किसानों के असंतोष और विवादों के बीच योजना पर विराम लग गया। अब मौजूदा मोहन यादव सरकार ने इसे दुबारा लागू करने का फैसला किया है। शुरुआत सोयाबीन से की जा रही है और आज से किसानों का पंजीयन भी शुरू हो गया है।
लेकिन, सरकार की इस घोषणा ने किसानों को राहत देने के बजाय उन्हें आंदोलन की राह पर खड़ा कर दिया है। हरदा, नरसिंहपुर, नर्मदापुरम जैसे जिलों में किसान ट्रैक्टर रैलियां निकालकर विरोध जता रहे हैं।
किसानों का विरोध क्यों?
किसानों का कहना है कि 2017 में भी इस योजना का अनुभव अच्छा नहीं रहा। उस समय दावा किया गया था कि किसानों को मंडियों में यदि MSP से कम भाव मिलेगा तो सरकार अंतर की राशि खातों में डालेगी। लेकिन हकीकत में किसानों को न तो सही समय पर भुगतान मिला और न ही पूरी उपज का लाभ।
किसानों की आपत्तियां कुछ इस तरह हैं –
-
MSP पर समानता रहती है, जबकि भावांतर में मंडी-दर-मंडी भाव अलग-अलग हो जाते हैं। इससे नुकसान की आशंका रहती है।
-
योजना लागू करने से पहले किसानों की राय नहीं ली गई, एकतरफा फैसला थोप दिया गया।
-
सरकार किसानों को विकल्प क्यों नहीं देती कि वे चाहें तो सीधे MSP पर बेचें या भावांतर योजना चुनें?
-
बाजार भाव गिरने का खतरा रहता है, जिससे व्यापारी ज्यादा फायदा उठा सकते हैं।
-
केवल 40% उत्पादन की खरीद और 15% तक भावांतर भुगतान की सीमा तय है, यानी किसानों को पूरा लाभ नहीं मिलेगा।
किसानों का तर्क है कि जब फसलें पहले ही खराब हो चुकी हैं तो सरकार को सबसे पहले मुआवजा देना चाहिए और बची हुई उपज पर MSP से ऊपर बोनस मिलना चाहिए।
सीएम मोहन यादव का आश्वासन
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में सागर जिले के जैसीनगर में ऐलान किया था कि किसानों को किसी भी हाल में घाटा नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि मंडियों में सोयाबीन MSP से कम रेट पर बिकेगा तो सरकार अंतर की भरपाई करेगी।
👉 इस साल सोयाबीन का MSP 5328 रुपए प्रति क्विंटल तय है।
👉 यदि किसी किसान की उपज 5000 रुपए प्रति क्विंटल में बिकती है, तो सरकार 328 रुपए प्रति क्विंटल का भावांतर भुगतान करेगी।
सीएम ने साफ कहा, “एक रुपए का घाटा भी किसान को नहीं होने देंगे।”
भावांतर योजना क्या है? – एक नजर इतिहास पर
-
16 अक्टूबर 2017 को शिवराज सिंह चौहान सरकार ने इसे शुरू किया था।
-
शुरुआत में 8 फसलों (सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द, तुअर) को शामिल किया गया था। बाद में यह 13 खरीफ फसलों तक बढ़ी।
-
मकसद था कि किसान को यदि मंडी में MSP से कम भाव मिले तो राज्य सरकार वह अंतर राशि सीधे उसके खाते में जमा करे।
-
लेकिन धीरे-धीरे किसानों में असंतोष बढ़ा और 2018 में कमलनाथ सरकार आने के बाद योजना ठंडी पड़ गई।
अब मोहन सरकार ने इसे फिर से लागू किया है, लेकिन इस बार शुरुआत सिर्फ सोयाबीन से की जा रही है।
योजना की नई गाइडलाइन
-
पंजीयन अवधि : 3 अक्टूबर से 17 अक्टूबर 2025
-
फसल बिक्री और भुगतान : 24 अक्टूबर 2025 से 15 जनवरी 2026
-
किसानों को मंडी में यदि भाव MSP से कम मिलता है तो अंतर राशि सीधे उनके बैंक खाते में डाली जाएगी।
किसानों का सवाल : “क्या फिर से वही कहानी दोहराई जाएगी?”
सरकार का दावा है कि इस बार व्यवस्था पारदर्शी और किसानों के हित में होगी। लेकिन किसानों का भरोसा अब भी डगमगाया हुआ है। वे कहते हैं कि जब MSP पहले से मौजूद है, तो अलग से योजना की क्या जरूरत है?
इस समय गांव-गांव में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और चेतावनी दे चुके हैं कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह विरोध एक बड़े आंदोलन में बदल जाएगा।
कुल मिलाकर, सरकार इसे किसानों के लिए “नुकसान की भरपाई” मान रही है, जबकि किसान इसे “व्यापारियों का फायदा” बता रहे हैं। अब देखना यह होगा कि आने वाले हफ्तों में भावांतर योजना सचमुच किसानों की जेब भरती है या फिर यह भी एक चुनावी घोषणा बनकर रह जाती है।