गरबा सिर्फ नृत्य नहीं, देवी उपासना है: बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री बोले—“अशोभनीय कपड़े पहनकर खेलने वालों को माँ दुर्गा की कृपा नहीं मिलेगी”, कहा – सिर्फ रील और फोटो के लिए न खेले गरबा!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

नवरात्रि का समय आते ही देशभर में गरबा और डांडिया की धूम रहती है। लेकिन इसी बीच बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने एक खास अपील की है, जिसने चर्चा छेड़ दी है। उन्होंने कहा है कि गरबा पंडालों में वही युवक-युवतियां प्रवेश करें जो पूरी और शालीन पोशाक पहनें।

“रील और फोटो के लिए गरबा खेलने वालों को पुण्य नहीं”

पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने चिंता जताते हुए कहा कि आजकल गरबा की असली भावना कहीं खो सी गई है। कुछ लोग सिर्फ रील बनाने और फोटो खिंचवाने के लिए आते हैं। वहीं, कई लोग फूहड़ कपड़े पहनकर गरबा खेलते हैं, जो परंपरा के खिलाफ है।

उन्होंने साफ कहा –

“गरबा सिर्फ मनोरंजन नहीं, यह देवी उपासना का हिस्सा है। जो लोग अशोभनीय कपड़े पहनकर या गलत दृष्टिकोण से इसमें शामिल होते हैं, उन्हें मां दुर्गा की कृपा प्राप्त नहीं होती।”

“गरबा हमारी परंपरा का उपहास न बने”

धीरेंद्र शास्त्री ने जोर देकर कहा कि गरबा और डांडिया भारतीय संस्कृति और नवरात्रि साधना का अभिन्न हिस्सा हैं। यह सिर्फ नृत्य नहीं बल्कि मां दुर्गा की महिमा का प्रतीक है। इसलिए इसे आधुनिकता की आड़ में फूहड़ता और मजाक का रूप न दिया जाए।

पहले भी दिया था बड़ा बयान

यह पहली बार नहीं है जब शास्त्री ने गरबा आयोजनों पर सवाल उठाए हों। इससे पहले भी उन्होंने गरबा पंडालों में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की थी। उस वक्त कई जगहों पर पंडालों के बाहर बाकायदा बैनर भी लगाए गए थे।

उनका तर्क था –

“जब सनातन धर्मावलंबी अन्य मजहब के आयोजनों में शामिल नहीं होते, तो फिर हमारे धार्मिक उत्सवों में भी बाहरी दखल नहीं होना चाहिए।”

“नौ दिन दुर्गा-दुर्गा, दसवें दिन दारू और मुर्गा”

पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने एक और विडंबना की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि कई लोग नवरात्रि के नौ दिन तो पूरे भक्तिभाव से मां दुर्गा का नाम लेते हैं, लेकिन दसवें दिन आते-आते वही लोग शराब और मांसाहार में लग जाते हैं। उनके अनुसार, यही वजह है कि सनातन धर्मावलंबी स्वयं अपने धर्म का जितना उपहास करते हैं, उतना दूसरे मजहब के लोग भी नहीं करते।

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