सरकारी जमीन घोटाले पर हाईकोर्ट सख्त: ग्वालियर खंडपीठ ने विधि व राजस्व विभाग के प्रमुख सचिवों को किया तलब, 11 अगस्त को कोर्ट में होना होगा हाज़िर!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

ग्राम मुरार में सरकारी जमीन के रिकॉर्ड में गड़बड़ी और कथित नामांतरण घोटाले को लेकर ग्वालियर हाईकोर्ट की युगल पीठ ने सख्त रुख अपनाते हुए मध्यप्रदेश शासन के विधि और राजस्व विभाग के प्रमुख सचिवों को 11 अगस्त 2025 को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि अधिकारी यह बताएं कि प्रदेश में सरकारी जमीनों की सुरक्षा के लिए अब तक कौन-कौन से ठोस कदम उठाए गए हैं।

विधानसभा सत्र का हवाला देकर टाल दी गई थी पिछली सुनवाई

गौरतलब है कि दोनों अधिकारियों को इससे पहले 6 अगस्त को वर्चुअल माध्यम से कोर्ट के समक्ष पेश होना था, लेकिन अतिरिक्त महाधिवक्ता की ओर से यह जानकारी दी गई कि विधानसभा सत्र चल रहा है, और प्रमुख सचिव व्यस्त हैं। इसे कोर्ट ने अस्वीकार करते हुए अब सीधी उपस्थिति अनिवार्य की है। यह मामला जमीन की हेराफेरी को लेकर उच्च स्तरीय संवेदनशीलता और न्यायिक निगरानी का उदाहरण बनता जा रहा है।

जनहित याचिका में उठाया गया था मुरार की जमीन का मामला

यह संपूर्ण मामला जनहित याचिका क्रमांक 587/2024 से जुड़ा है, जिसे याचिकाकर्ता दीपक कुमार द्वारा दायर किया गया था। याचिका में आरोप लगाया गया है कि ग्राम मुरार के सर्वे क्रमांक 703, 705, 706, 707, 708 की कुल 4 बीघा 1 बिस्वा जमीन, जो कि राजस्व रिकॉर्ड में शासकीय थी, उसे फर्जीवाड़े और रिकॉर्ड में हेराफेरी करके रामचरण, गीता, पूरन आदि के नाम नामांतरण करा दिया गया। इस मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के लिए याचिकाकर्ता ने CBI जांच की मांग भी की है।

कोर्ट ने पहले ही जता दी थी नाराज़गी

9 अप्रैल 2025 को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार से सवाल किया था – “सरकारी जमीनों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन का प्रदर्शन इतना ढीला और असंगठित क्यों है?” कोर्ट ने राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव से यह स्पष्ट करने को कहा था कि जमीनों को सुरक्षित रखने के लिए कौन-कौन से नीतिगत या प्रशासनिक उपाय लागू किए गए हैं।

कोर्ट ने अस्वीकार किया था शपथ पत्र

प्रमुख सचिव द्वारा दाखिल किया गया शपथ पत्र न्यायालय को संतुष्ट नहीं कर सका, जिसे कोर्ट ने स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने इस मुद्दे को केवल मुरार तक सीमित नहीं माना, बल्कि इसे प्रदेशभर में फैले भूमि घोटालों का संकेतक माना है। विशेष रूप से कोर्ट ने श्योपुर कलेक्टर के 7 फरवरी 2024 के पत्र का हवाला देते हुए कहा कि यह पत्र “आंखें खोलने वाला” है, जिसमें बताया गया था कि आदिवासी समुदाय की जमीनें फर्जी दस्तावेजों और मिलीभगत से हड़पी जा रही हैं।

इस पूरी प्रक्रिया से यह स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट अब सरकारी जमीनों की सुरक्षा को लेकर सिर्फ चेतावनी तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि अब जवाबदेही तय करने और व्यक्तिगत उपस्थिति के माध्यम से जवाब मांगने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। 11 अगस्त की सुनवाई इस मामले में निर्णायक हो सकती है, जहां न सिर्फ अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी, बल्कि यह भी तय होगा कि प्रदेश में भूमि प्रबंधन व्यवस्था कितनी पारदर्शी और सुरक्षित है।

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