मध्यप्रदेश के पदोन्नति नियमों पर हाईकोर्ट में आज अहम सुनवाई: दिल्ली से बुलाए गए सीनियर एडवोकेट; सरकार पेश करेगी विस्तृत जवाब; सरकार का जवाब तय करेगा हजारों कर्मचारियों का भविष्य!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश में लोक सेवा पदोन्नति नियमों को लेकर कानूनी जंग अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। मंगलवार, 12 अगस्त को जबलपुर हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी, जिसमें राज्य सरकार को अपना विस्तृत जवाब पेश करना है। यह सुनवाई न केवल सरकारी तंत्र में पदोन्नति प्रक्रिया के भविष्य को तय करेगी, बल्कि हजारों अफसर-कर्मचारियों के करियर पर भी सीधा असर डालेगी।

पिछली सुनवाई में सरकार की कमजोर तैयारी, अब दिल्ली से बुलाए गए सीनियर एडवोकेट

मामले की पिछली सुनवाई में सरकार अपना पक्ष पूरी मजबूती से नहीं रख पाई थी और कोर्ट से अतिरिक्त समय की मांग करनी पड़ी थी। सूत्रों के मुताबिक, इस बार राज्य सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। चर्चा है कि दिल्ली से पूर्व अतिरिक्त सालिसिटर जनरल सी.एस. वैद्यनाथन को बुलाकर सरकार की ओर से बहस कराई जा सकती है, ताकि कानूनी पक्ष सशक्त और ठोस रहे।

7 जुलाई की सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव सहित अन्य संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर स्पष्ट जवाब मांगा था। साथ ही यह आदेश भी दिया था कि जब तक मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक किसी भी कर्मचारी को पदोन्नति नहीं दी जाएगी। परिणामस्वरूप, 31 जुलाई तक पदोन्नति देने की सरकार की कोशिशें ठंडे बस्ते में चली गईं।

याचिकाकर्ताओं का आरोप—पुराने नियम रद्द होने के बावजूद लागू की गई विवादित नीति

भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि हाईकोर्ट पहले ही 2002 के पदोन्नति नियमों को आर.बी. राय केस में रद्द कर चुका है। इसके बावजूद, सरकार ने लगभग उसी ढांचे पर आधारित नए नियम लागू कर दिए, जबकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और वहां ‘यथास्थिति’ बनाए रखने का आदेश भी जारी है।

कैबिनेट की मंजूरी से अधिसूचना तक—पूरा विवाद कैसे खड़ा हुआ

17 जून को मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट ने नए पदोन्नति नियमों को मंजूरी दी थी। इसके बाद 19 जून 2025 को सरकार ने अधिसूचना जारी कर इन नियमों को लागू कर दिया। हालांकि, न तो सुप्रीम कोर्ट में लंबित विशेष अनुमति याचिका वापस ली गई और न ही पुराने नियम के तहत पदोन्नत कर्मचारियों को पदावनत किया गया। यही वजह रही कि याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सरकार की इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए।

आज की सुनवाई से तय होगा—पदोन्नति का रास्ता खुलेगा या रहेगा बंद

अब पूरा मामला इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य सरकार हाईकोर्ट में क्या जवाब देती है। अगर कोर्ट को सरकार का पक्ष संतोषजनक लगा, तो संभव है कि पदोन्नति की प्रक्रिया पर से रोक हटे। अन्यथा, यह रोक लंबे समय तक जारी रह सकती है, जिससे प्रशासनिक ढांचे में पदोन्नति पेंडिंग का संकट और गहरा जाएगा।

क्यों है यह मामला इतना अहम?

पदोन्नति नियमों पर हो रही यह कानूनी बहस सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि कर्मचारियों के भविष्य, पदक्रम, और सरकारी तंत्र की कार्यक्षमता से जुड़ा मसला है। अगर नियम फिर से रद्द होते हैं, तो हजारों कर्मचारियों के करियर में अनिश्चितता और निराशा का दौर जारी रहेगा। वहीं, अगर नियम बरकरार रहे, तो इसका असर आने वाले कई वर्षों तक प्रमोशन पॉलिसी पर देखने को मिलेगा।

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