मध्यप्रदेश में ‘आदिवासी हिंदू हैं या नहीं’ का विवाद: सीएम डॉ. मोहन यादव के बयान पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने दी तीखी प्रतिक्रिया, काकोड़िया ने कहा – ‘CM इतिहास नहीं जानते, गोंडवाना आकर पढ़ लें’

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:  

मध्यप्रदेश में आदिवासियों की धार्मिक पहचान को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गुरुवार को शहीद शंकर शाह और रघुनाथ शाह की बलिदान जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि “भारत का आदिवासी हमेशा से सनातनी हिंदू रहा है और उसने कभी हिंदू धर्म नहीं छोड़ा।” सीएम के इस बयान के बाद गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोगापा) और कांग्रेस के आदिवासी नेताओं ने कड़ी आपत्ति जताई है।

मुख्यमंत्री का तर्क: “आदिवासी हमेशा सनातनी रहे हैं”

कार्यक्रम में सीएम डॉ. यादव ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि अंग्रेजों ने शंकर शाह और रघुनाथ शाह से दबाव बनाकर धर्म बदलने की कोशिश की थी। उन्हें पेंशन और सुविधाओं का लालच दिया गया, लेकिन उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने से इंकार कर बलिदान देना स्वीकार किया।
डॉ. यादव ने आगे कहा कि आदिवासियों के पूर्वज देवी-देवताओं की पूजा करते थे। शंकर शाह-रघुनाथ शाह की रानियां भी माता चंडी की उपासना करती थीं। उनका मानना है कि आदिवासी और हिंदू अलग नहीं हैं बल्कि दोनों का रिश्ता सनातन संस्कृति से जुड़ा हुआ है।

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का पलटवार

सीएम के बयान पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के वरिष्ठ नेता राधेश्याम काकोड़िया ने कहा कि आदिवासियों की अपनी अलग पहचान, संस्कृति और परंपरा है। उन्हें जबरन हिंदू कहना या किसी धर्म में बांधना गलत है।
काकोड़िया ने आरोप लगाया – “सरकार आदिवासियों को बरगला रही है। हमारी बोली, पहनावा, संस्कृति और परंपरा बिल्कुल अलग है। 1931 के ट्राइबल एक्ट में आदिवासियों को अलग से मान्यता दी गई थी। आदिवासियों को सनातनी कहना हमारी पहचान पर कुठाराघात है।”

उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया के 194 देश आदिवासी दिवस मनाते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 1994 से 9 अगस्त को ‘विश्व मूलनिवासी दिवस’ घोषित किया है। काकोड़िया ने तंज कसते हुए कहा – “अगर इतिहास की जानकारी नहीं है तो मुख्यमंत्री और मंत्री गोंडवाना के गोकुल में आएं, हम उन्हें पढ़ाने को तैयार हैं।”

कांग्रेस के आदिवासी नेता भी नाराज

सीएम के बयान पर कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने भी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का यह बयान आदिवासियों की अलग पहचान को नकारने वाला है।
वहीं, विपक्ष के नेता उमंग सिंघार ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि “आदिवासी हिंदू नहीं हैं।” उसी बयान को लेकर यह विवाद खड़ा हुआ और अब मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया के बाद यह मामला और गरमा गया है।

क्यों अहम है आदिवासी वोट बैंक?

2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश में करीब 1.53 करोड़ आदिवासी रहते हैं, जो प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 21% हिस्सा हैं। इनमें सबसे बड़ी जनजाति भील (46 लाख) और गोंड (43 लाख) हैं।
प्रदेश में कुल 46 जनजातियां निवास करती हैं। यही वजह है कि चुनावी मौसम में आदिवासी पहचान और धार्मिक जुड़ाव का मुद्दा हमेशा राजनीति के केंद्र में आ जाता है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के बयान ने आदिवासियों की धार्मिक पहचान को लेकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। जहां सीएम इसे ऐतिहासिक तथ्यों से जोड़ते हुए आदिवासियों को सनातनी बता रहे हैं, वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और कांग्रेस के नेता इसे आदिवासी संस्कृति पर हमला मान रहे हैं।
अब यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक बहस तक सीमित रहता है या फिर चुनावी रणनीति का बड़ा हिस्सा बन जाता है।

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