जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भाजपा में लंबे समय से संगठन और सत्ता दोनों स्तरों पर परिवारवाद को लेकर सवाल उठते रहे हैं। अब पार्टी ने इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा निर्णय लिया है। प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक संगठन की कार्यकारिणी में उन नेताओं के बेटों, बेटियों और परिजनों को जगह नहीं दी जाएगी, जो सक्रिय राजनीति में किसी पद पर हैं। इसे लेकर राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष के भोपाल प्रवास के दौरान ही निर्देश जारी किए गए और अमल भी शुरू हो गया है।
मऊगंज से शुरू हुआ अमल, पूर्व स्पीकर के बेटे को छोड़ना पड़ा पद
रविवार को मऊगंज जिले में घोषित भाजपा कार्यकारिणी में देवतालाब विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को जिला उपाध्यक्ष बनाया गया था। इस नियुक्ति पर तुरंत सवाल उठे और मामला प्रदेश नेतृत्व तक पहुँचा। संगठन ने स्पष्ट कर दिया कि नए नियम के तहत एक ही परिवार के दो लोगों को पद नहीं दिया जा सकता। इसके बाद राहुल गौतम ने स्वेच्छा से पद छोड़ने का पत्र प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल को भेज दिया। यह घटनाक्रम बाकी जिलों के लिए भी एक बड़ा संदेश बन गया कि अब किसी भी हाल में परिवारवाद को बढ़ावा नहीं मिलेगा।
प्रदेश नेतृत्व ने भेजा सख्त संदेश
मऊगंज की घटना के बाद प्रदेश नेतृत्व ने जिला अध्यक्षों, जिला प्रभारियों और संभाग प्रभारियों से साफ कहा कि कार्यकारिणी के नाम तय करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि किसी विधायक, सांसद या सक्रिय पदाधिकारी के परिजन सूची में शामिल न हों। सभी जिलों से कहा गया है कि यदि कोई नाम ऐसा आता है, तो उसे तुरंत हटा दिया जाए।
किन्हें मिल सकता है संगठन में मौका?
‘एक परिवार–एक पद’ का नियम उन नेताओं के परिजनों को रास्ता देता है, जो अब सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके हैं।
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मुदित शेजवार – पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। ऐसे में उनके बेटे मुदित शेजवार को संगठन में अवसर मिलने की संभावना है।
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तुष्मुल झा – पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के निधन के बाद उनके बेटे तुष्मुल झा को संगठन में स्थान मिल सकता है।
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पीतांबर प्रताप सिंह – पूर्व मंत्री माया सिंह के बेटे को भी कार्यकारिणी में जगह मिलने की चर्चा है।
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मंदार महाजन – पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन सक्रिय राजनीति से दूर हैं, इसलिए उनके बेटे मंदार महाजन को भी प्रदेश कार्यकारिणी में पद मिल सकता है।
किन्हें निराशा का सामना करना पड़ सकता है?
नए फॉर्मूले से कई बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों की राह फिलहाल कठिन हो गई है।
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सिद्धार्थ मलैया – पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के बेटे दमोह में सक्रिय हैं, लेकिन पिता के विधायक रहने से उन्हें पद मिलना मुश्किल है।
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अभिषेक भार्गव – गोपाल भार्गव के बेटे लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं, पर पिता के सक्रिय विधायक होने से संगठन में जगह नहीं मिलेगी।
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देवेन्द्र सिंह तोमर (रामू) – विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे ग्वालियर-मुरैना में सक्रिय हैं, लेकिन उन्हें भी फिलहाल इंतजार करना होगा।
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डॉ. निवेदिता रत्नाकर – केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार की बेटी सागर-टीकमगढ़ में सक्रिय हैं, पर पिता की सक्रियता के कारण संगठन में स्थान नहीं मिल पाएगा।
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कार्तिकेय चौहान – पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे बुधनी क्षेत्र में सक्रिय हैं, लेकिन परिवारवाद के कारण उन्हें बाहर रखा जाएगा।
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सुकर्ण मिश्रा – पूर्व गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के बेटे दतिया में लगातार सक्रिय हैं, फिर भी पिता की सक्रिय भूमिका के चलते उन्हें संगठन में फिलहाल रोक दिया गया है।
राजनीति में उतरने को तैयार, लेकिन फॉर्मूले से अटके युवा
प्रदेश के कई मंत्री और विधायक के बेटे सक्रिय राजनीति में अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं, मगर नए नियम के कारण उन्हें अभी पद नहीं मिल पाएगा।
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आकाश राजपूत – मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बेटे सागर जिले में आयोजनों के जरिए सक्रिय हैं।
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नीतेश सिलावट – जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट के बेटे सांवेर और इंदौर क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय हैं।
इन दोनों युवाओं को संगठन में आधिकारिक जिम्मेदारी फिलहाल नहीं मिलेगी।