सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- पहले क्यों नहीं आए? जस्टिस यशवंत वर्मा पर संसद में महाभियोग की तैयारी, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती पर फैसला सुरक्षित; कपिल सिब्बल बोले- इन-हाउस रिपोर्ट अवैध है!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भारत की न्यायपालिका इस समय एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे आरोपों को लेकर महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी लगभग अंतिम चरण में है। दूसरी ओर, जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट तथा उस पर आधारित महाभियोग की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है। बुधवार को सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- पहले क्यों नहीं आए?

सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह ने सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा के आचरण पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यदि उन्हें जांच समिति की वैधता पर आपत्ति थी, तो उसी समय अदालत क्यों नहीं आए? अब जब रिपोर्ट में उन्हें दोषी ठहरा दिया गया है, तब इसे चुनौती देना संदेह पैदा करता है।

कपिल सिब्बल की दलीलें और कोर्ट की तल्ख टिप्पणियां

सीनियर वकील कपिल सिब्बल, जो जस्टिस वर्मा की ओर से पेश हुए, ने तर्क दिया कि CJI द्वारा महाभियोग की सिफारिश करना संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन है और यह अधिकार सिर्फ संसद को है। उन्होंने रिपोर्ट को “non est” यानी विधिक रूप से अस्तित्वहीन घोषित करने की अपील की।

हालांकि, बेंच ने दो टूक कहा कि CJI सिर्फ पोस्ट ऑफिस नहीं होते और अगर वे किसी न्यायाधीश को दोषी मानते हैं, तो उनके पास देशहित में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सूचित करने की ज़िम्मेदारी होती है।

कोर्ट ने साफ किया कि वह रिपोर्ट में आए तथ्यों पर नहीं, बल्कि संवैधानिक पहलुओं पर विचार करेगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एक प्रारंभिक प्रक्रिया थी, जिसमें क्रॉस एग्जामिनेशन का प्रावधान नहीं होता।

जस्टिस वर्मा की याचिका: 5 सवाल, 10 तर्क

जस्टिस वर्मा की याचिका में 5 प्रमुख सवाल हैं जो जांच समिति से पूछे जाने चाहिए थे—जैसे कि नकदी कहां से आई, कितनी थी, आग कैसे लगी और क्या वह नकदी असली थी? इसके अलावा, उन्होंने 10 कानूनी तर्क भी दिए हैं:

  • इन-हाउस प्रक्रिया सिर्फ प्रशासनिक है, संवैधानिक या वैधानिक नहीं।

  • बिना औपचारिक शिकायत के जांच समिति बनाना नियमविरुद्ध।

  • मीडिया ट्रायल से प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान।

  • आरोपियों से गुप्त तरीके से पूछताछ, आरोपों के खंडन का मौका नहीं मिला।

  • जांच रिपोर्ट अनुमानों पर आधारित, कोई ठोस साक्ष्य नहीं।

  • रिपोर्ट लीक कर दी गई, जिससे उनकी छवि को अपूरणीय क्षति पहुंची।

बता दें, 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के पहले दिन केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि महाभियोग प्रस्ताव लाने की लगभग पूरी तैयारी हो चुकी है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा हो चुकी है, यहां तक कि छोटे दलों के एक-एक सांसद से भी समर्थन मांगा जा रहा है, ताकि संसद का मत सर्वसम्मत हो।

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