मंत्रालय में पहली बार हुई बड़ी बैठक: महापौरों ने खोलीं शिकायतों की झड़ी, कहा – “आयुक्त सुनते नहीं”; विजयवर्गीय ने दिया हर 10 दिन में बैठक का आदेश!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मंगलवार देर रात मंत्रालय में एक ऐतिहासिक बैठक देखने को मिली। नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी, विभाग के एसीएस संजय दुबे और आयुक्त संकेत भौंडवे की मौजूदगी में प्रदेश के 14 महापौरों ने हिस्सा लिया। खास बात यह रही कि ग्वालियर और कटनी के मेयर इस बैठक में शामिल नहीं हो सके।

बैठक में महापौरों ने अपने-अपने शहरों की समस्याएं और लंबित कामों को खुलकर रखा। कई महापौरों ने अफसरों पर “न सुनने” और “काम टालने” के आरोप लगाए, तो वहीं मंत्री विजयवर्गीय ने अफसरों को स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी।

अवैध कॉलोनियों पर चिंता – “समय रहते रोकें, वरना बड़ी मुसीबत”

बैठक में जबलपुर महापौर जगत बहादुर सिंह ने अवैध कॉलोनियों के बढ़ते जाल पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि गरीब लोग सस्ते प्लॉट या मकान खरीद लेते हैं, लेकिन कॉलोनी काटने वाले मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराते। बाद में सारा दबाव सरकार और निगम पर आ जाता है। उनका साफ कहना था कि अवैध कॉलोनियों पर कड़े कानून और सख्त कार्रवाई जरूरी है।

इस मुद्दे पर कई अन्य महापौरों ने भी सहमति जताई और कहा कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हालात और बिगड़ेंगे।

“आयुक्त सुनते नहीं” – सिंगरौली महापौर ने जताई नाराज़गी

सिंगरौली महापौर रानी अग्रवाल ने बैठक में शिकायत की कि कई बार जनता की समस्याएं अधिकारियों तक पहुंचाने के बावजूद निगम आयुक्त उनकी नहीं सुनते। इस पर मंत्री विजयवर्गीय ने निर्देश दिया कि अब हर 10 दिन में महापौर और निगम आयुक्त की बैठक होगी, जिसमें जरूरी विषयों पर चर्चा और त्वरित समाधान सुनिश्चित किया जाएगा।

जमीन, परियोजनाएं और शुल्क पर भी उठे सवाल

बैठक में छिंदवाड़ा महापौर विक्रम अहके ने कहा कि शहर में राजस्व की कई जमीनें निगम के उपयोग के लिए जरूरी हैं, लेकिन नजूल भूमि होने की वजह से हर बार शासन की अनुमति लेनी पड़ती है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसी जमीनें सीधे नगर निगम के अधिपत्य में दी जानी चाहिए।

रतलाम महापौर ने अमृत परियोजना के फेज-1 में गड़बड़ियों की शिकायत उठाई और विस्तृत जांच की मांग की। वहीं जबलपुर महापौर ने कॉमर्शियल बिल्डिंग पर लगने वाले 7% आश्रय शुल्क को अनुचित बताते हुए इसे खत्म या कम करने की बात कही।

कर्मचारियों की भर्ती का मुद्दा भी उठा

कुछ महापौरों ने यह भी मांग की कि नगर निगम में कर्मचारियों की भर्ती का अधिकार महापौरों को मिले, ताकि शहर की जरूरत के हिसाब से नियुक्तियां की जा सकें और रिक्त पद जल्द भरे जा सकें।

मंत्री ने दिए बड़े निर्देश – अब होगी नियमित मॉनिटरिंग

लंबी चर्चा और बहस के बाद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कई अहम फैसले लिए। इनमें शामिल हैं:

  • चुंगी कर का पैसा समय पर और पूरी तरह से मिले।

  • सभी नगर निगमों का एनर्जी ऑडिट कराया जाएगा।

  • हर हफ्ते महापौर-परिषद (एमआईसी) की बैठक अनिवार्य होगी।

  • सड़कों की रेस्टोरेशन की गुणवत्ता की राज्य स्तरीय जांच होगी।

  • बिल्डिंग परमिशन से जुड़े डेटा फॉर्मेट को सरल बनाया जाएगा।

  • लीज से जुड़े लंबित प्रकरणों का शीघ्र निराकरण होगा।

  • प्रशासनिक कार्यों में नवीन तकनीक और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।

  • कर्मचारियों के लिए फेस अटेंडेंस सिस्टम लागू होगा।

  • निकायों के खर्च कम करने और संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए नई तकनीकी व्यवस्था विकसित की जाएगी।

  • रिक्त पदों पर जल्द ही नियुक्तियां की जाएंगी।

यह बैठक साफ तौर पर महापौरों और अफसरों के बीच जमी बर्फ को तोड़ने वाली साबित हुई। महापौरों ने अपनी नाराज़गी खुलकर रखी और मंत्री ने तत्काल समाधान के लिए निर्देश दिए। अब देखना होगा कि मंत्रालय में हुए ये बड़े वादे जमीनी स्तर पर कितनी तेजी से लागू होते हैं।

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