जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
बिहार में इस समय मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) का काम चल रहा है, लेकिन इसी बीच चुनाव आयोग (EC) की तरफ से एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने दावा किया है कि राज्य में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक – खासकर नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोग – वोटर लिस्ट में शामिल हैं। ये दावा तब सामने आया जब BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन के लिए फॉर्म भरवा रहे थे।
EC का दावा और जांच की तैयारी
EC अधिकारियों के मुताबिक, 1 अगस्त 2025 के बाद इन संदिग्ध विदेशी वोटरों की विस्तृत जांच प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी और इसमें अवैध प्रवासियों के नाम शामिल नहीं होंगे। आयोग का दावा है कि ये कार्रवाई किसी भी कीमत पर मतदाता सूची की पवित्रता बनाए रखने के उद्देश्य से की जा रही है।
मतदाता सत्यापन प्रक्रिया कैसे चल रही है?
24 जून से शुरू हुई इस कवायद के तहत राज्य भर में BLOs वोटरों से उनके दस्तावेज मांग रहे हैं।
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जिन लोगों का नाम 1 जनवरी 2003 की लिस्ट में है, उन्हें केवल फॉर्म जमा करना है।
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लेकिन जो मतदाता 2003 के बाद जोड़े गए या पहली बार वोटर बने हैं, उन्हें नागरिकता और उम्र साबित करने वाले दस्तावेज देने होंगे।
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वोटर अपने डॉक्यूमेंट 1 सितंबर तक जमा कर सकते हैं।
अब तक 80% से अधिक वोटरों ने फॉर्म जमा कर दिया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के अनुसार, 7.89 करोड़ मतदाताओं में से करीब 6.32 करोड़ वोटर्स अपना गणना प्रपत्र भर चुके हैं।
राजनीतिक घमासान शुरू – विपक्ष ने उठाए गंभीर सवाल
EC के इस बयान के तुरंत बाद, देश की राजनीति गरमा गई है। पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि, “चुनाव आयोग हमेशा से केंद्र सरकार की कठपुतली रहा है। यह SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन पूरी तरह असंवैधानिक है। यह बहुसंख्यक सरकारों को सत्ता में बनाए रखने की एक साज़िश है।” सिब्बल ने यहां तक कहा कि, “नागरिकता का फैसला लेना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।”
राजद सांसद मनोज झा ने भी इसे “प्लांटेड स्टोरी” बताते हुए आरोप लगाया कि, “अगर बिहार में वाकई कोई विदेशी है, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? गृह मंत्रालय जवाब दे। यह खबर नफरत फैलाने के लिए चलाई जा रही है।” उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा कि इन सूचनाओं का स्रोत क्या है, और वे क्यों गोपनीयता के साथ मीडिया में लीक की जा रही हैं।
क्या वोटर लिस्ट में विदेशी नामों की एंट्री है सिस्टम की विफलता?
यह सवाल अब पूरे बिहार ही नहीं, बल्कि देश के लोकतंत्र पर खड़ा हो गया है। अगर EC का दावा सही है, तो यह सुरक्षा से जुड़ा बड़ा मसला है। लेकिन अगर यह सिर्फ राजनीतिक हवा बनाने के लिए फैलाया गया डर है, तो इससे आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह खड़ा हो सकता है।
BLOs द्वारा लिए जा रहे दस्तावेजों में अगर नागरिकता के प्रामाणिक प्रमाण मांगे जा रहे हैं, तो सवाल यह भी उठता है कि इतने वर्षों तक वोटर लिस्ट में ये लोग कैसे शामिल रहे? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही थी या जानबूझकर की गई चूक?
क्या हो सकते हैं इसके दूरगामी परिणाम?
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अगर आयोग ऐसे नामों को वोटर लिस्ट से हटाता है, तो कई इलाकों में राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
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विपक्ष इसे भाजपा की वोट कटिंग रणनीति बता रहा है।
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वहीं सत्तापक्ष इसे फेयर इलेक्शन का रिफॉर्म बता सकता है।