जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मकर संक्रांति, हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिन सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने पर आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति का क्या महत्व है और इसके पीछे की कहानी क्या है? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं मकर संक्रांति के बारे में कुछ खास बातें, जो इसे इतना विशेष बनाती हैं!
मकर संक्रांति का त्योहार हर साल जनवरी के 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है, जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसे ‘सूर्य का संक्रमण’ भी कहा जाता है। यह दिन हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से आपके सारे पाप समाप्त हो जाते हैं और आपको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस दिन सूर्य देव की उपासना करना और दान-पुण्य करना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति का दिन एक नए आरंभ का प्रतीक है। इस दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर अपने पुत्र शनि की राशि यानी मकर राशि में आते हैं। सूर्य और शनि का संबंध मकर संक्रांति के पर्व से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। वहीं, इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है और सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। शादी-ब्याह और अन्य शुभ कार्यों की राह खुल जाती है।
मकर संक्रांति का पर्व भारत में कई नामों से मनाया जाता है। कहीं इसे ‘पोंगल’ कहा जाता है, तो कहीं ‘खिचड़ी’ या ‘उत्तरायण’। इस दिन लोग तिल और गुड़ के लड्डू खाते हैं, पतंग उड़ाते हैं, सूरज को अर्घ्य देते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। कहा जाता है कि इस दिन ही गंगा नदी भगीरथ के साथ धरती पर आई थीं, और यह पर्व गंगा के साथ शुद्धि और पुण्य की शुरुआत का प्रतीक है।
भारत के हर हिस्से में इस दिन की अपनी खासियत है। कहीं लोग पतंग उड़ाते हैं, तो कहीं तिल और गुड़ के लड्डू खाते हैं। यह एक ऐसा त्योहार है जो न सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए रखता है।